तूफान ने सबकुछ उजाड़ा, दो महीने तक अंधेरे में डूबा गांव... फिर किसान ने लगाया देसी जुगाड़ और भर दिया खजाना

नई दिल्ली: कहानी एक ऐसे गांव की, जहां एक महिला को पीने और बाकी जरूरतों के पानी के लिए एक किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी तय करनी पड़ती थी। और ये केवल उसकी समस्या नहीं थी, बल्कि उसके पूरे गांव का यही हाल था। ऐसे में उसके पति ने एक देसी जुगाड़ निकाल

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नई दिल्ली: कहानी एक ऐसे गांव की, जहां एक महिला को पीने और बाकी जरूरतों के पानी के लिए एक किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी तय करनी पड़ती थी। और ये केवल उसकी समस्या नहीं थी, बल्कि उसके पूरे गांव का यही हाल था। ऐसे में उसके पति ने एक देसी जुगाड़ निकाला और इस जुगाड़ का असर ये हुआ कि पूरे गांव की पानी की समस्या दूर हो गई। हालांकि, ये इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं कि क्या है ये पूरी कहानी।
तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई जिले में एक कस्बा है कोठमंगलम। इसी कस्बे में एम वीरमणि नाम के किसान अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। वीरमणि की पत्नी वनिता पानी की कमी से परेशान थीं और उन्हें रोज़ाना एक किलोमीटर से भी ज्यादा दूर पानी लाने जाना पड़ता था। इस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश में वीरमणि को एक बरसात के दिन अहसास हुआ कि बारिश का पानी बर्बाद हो रहा है और उन्होंने इसे बचाने का एक तरीका खोजा।

वीरमणि ने अपने घर के सारे बर्तनों में पानी इकट्ठा करना शुरू किया। नतीजा ये हुआ कि कुछ दिनों तक उनकी पानी की जरूरत पूरी हो गई। ये वो मोड़ था, जिसपर वीरमणि को एहसास हुआ कि बारिश का पानी कितना काम आ सकता है। इसके बाद आया साल 2018, जब वीरमणि ने अपने घर के एक पुराने कुएं को फिर से चालू करने का फैसला किया।

ये वो कुआं था जिसका इस्तेमाल उनके दादा करते थे। उन्होंने अपने घर की छत से पाइपों के माध्यम से बारिश के पानी को कुएं में इकट्ठा करने का एक सिस्टम तैयार किया। कुएं को 15 फीट गहरा खोदा गया और उसके चारों ओर कंक्रीट का एक ढांचा बनाया गया। छत के दोनों ओर नालियां बनाई गईं, जहां से पानी पाइपों में बहकर 18 हजार लीटर क्षमता वाले कुएं में जाता था।

हालांकि, पहली बार में यह सिस्टम सफल नहीं हो पाया। द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सिस्टम को सही तरीके से काम कराने में वीरमणि को तीन महीने से ज्यादा का समय लगा। जब उन्होंने पहली बार कुएं पर कंक्रीट का ढ़ांचा बनाया तो एक घंटे की बारिश में ही उसमें दरारें पड़ गईं। फिर उन्होंने कुएं में पानी निकालने के लिए तीन परतें बनाने का फैसला किया।

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जेब से खर्च किए डेढ़ लाख रुपये

वीरमणि ने कंक्रीट के कवर को हटा दिया और धातु की छड़ों का इस्तेमाल करते कुएं की लंबाई और परिधि के चारों ओर एक फ्रेम बनाया। बेहतर रिजल्ट की उम्मीद में उन्होंने इसे सीमेंट से ढक दिया। आखिरकार उनकी कोशिश रंग लाई। कुएं में बारिश का पानी जमा होने लगा। इस पूरी कवायद में वीरमणि नेअपनी जेब से करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च किए।

तूफान में कुएं ने बुझाई 30 परिवारों की प्यास

उनकी इस कोशिश की असली परीक्षा हुई नवंबर 2018 में, जब तमिलनाडु में चक्रवाती तूफान गाजा आया। वीरमणि बताते हैं कि जब चक्रवात आया तो उनके शहर में दो महीने तक बिजली नहीं थी। पानी की तमाम मोटरें बंद हो गईं। लेकिन, उनका तैयार किया हुआ कुआं लबालब भरा था। उनके शहर के लगभग तीस परिवारों ने इस कुएं का पानी का इस्तेमाल किया और ये कुआं इन लोगों के लिए जीवनरक्षक साबित हुआ।

गांव के लोगों को मिली सीख

वीरमणि के गांव में बोरवेल सूखने और पंचायत की तरफ से केवल 2-3 दिनों में एक बार पानी की सप्लाई होने की वजह से, उनका कुआं शहर के निवासियों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। वीरमणि से प्रेरित होकर गांव के अन्य घरों ने भी अब अपने प्लास्टिक के पानी के टैंकों में बारिश के पानी का संचयन शुरू कर दिया है।

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पड़ोसी कहते, पैसे की बर्बादी है

वीरमणि का प्रयास सफल तो रहा, लेकिन इस सफलता के लिए उन्हें काफी कुछ सहना पड़ा। जब उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया था, तो गांव के बाकी लोग उनका मजाक बनाते थे। वीरमणि की पत्नी बताती हैं कि पड़ोसी आते थे और कहते थे कि ये केवल पैसे की बर्बादी है। इससे कुछ हासिल नहीं होगा। हालांकि, धीरे-धीरे गांव के लोगों की सोच बदलने लगी।

वीरमणि के भाई ने भी तैयार किया कुआं

वीरमणि के जिस कुएं का मजाक बनाया जाता था, चक्रवाती तूफान के दौरान उसी कुएं से गांव के लोगों ने अपनी प्यास बुझाई। वीरमणि को देखकर उनके भाई ने भी खेत के दूसरे कुएं में इसी तरह की प्रणाली स्थापित की है। वीरमणि बताते हैं कि उनके भाई ने दूसरे कुएं को खोलने और उसका इस्तेमाल वर्षा जल संचयन के लिए करने का फैसला किया। दोनों कुएं अब भर गए हैं।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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